अर्थशास्त्र का अर्थ
अर्थशास्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है अर्थ + शास्त्र जिसमें अर्थ से आशय धन से है तथा शास्त्र से आशय अध्ययन से है अतः धन के अध्ययन का विषय अर्थशास्त्र कहलाता है अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत और सामाजिक जरूरतों की पूर्ति तथा उत्पादन तथा मूल आवश्यकताओं संबंधी बातों का विस्तार से अध्ययन किया जाता है इसके साथ ही अर्थशास्त्र में मानवीय क्रियो का गहनता पूर्वक अध्ययन किया जाता है इसमें इच्छा, आवश्यकता एवं संतुष्टि से संबंधित भी अनेक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है अतः स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र में उत्पादन से संबंधित कार्यों तथा मानवीय क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है इस विषय में धन संबंधी समस्त क क्रियाकलापों का विस्तार से वर्णन होता है
मानवीय क्रियाएं :
1.आर्थिक क्रिया
2.अनार्थिक क्रिया
अर्थशास्त्र की परिभाषा :
(i) अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है यह एडम स्मिथ ने कहा |
(ii) अर्थशास्त्र मनुष्य के जीवन संबंधी साधारण कार्यों का अध्ययन करता है यह प्रो मार्शल ने कहा |
अर्थशास्त्र का अध्ययन क्यों करें ?
मानवीय जीवन अच्छे से यापन करने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को धन की आवश्यकता होती है वर्तमान समय में महंगाई भी अति ऊंचाई पर है जिसमें व्यक्ति को अपनी आय - व्यय के बीच में भी सामंजस्य बनाना अति आवश्यक है मनुष्य की इच्छाएं अनंत है और आवश्यकता है असीमित हैं अतः मानवीय जरूरत को पूरा करने में धन की परम आवश्यकता होती है मानव द्वारा कमाए गए धन को अति उपयोगी बनाने हेतु मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तथा धन के उचित स्थान पर वियोग करके उत्पादन के साधनों का सदुपयोग हेतु अर्थशास्त्र का अध्ययन अति आवश्यक है, उत्पादन की मात्रा बढ़ाने एवं उत्पादन लगता को कम करने एवं मानवीय आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हुए, उनकी पूर्ति करने के लिए अर्थशास्त्र का अध्ययन किया जाता है
अर्थशास्त्र की विषय वस्तु :-
व्यष्टि या सूक्ष्म अर्थशास्त्र :- व्यक्तियों, परिवारों ,फर्मो ,उद्योगों कीमत उत्पादक , उपभोक्ता इत्यादि का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है
समष्टि या व्यापक अर्थशास्त्र :- कुल आय, राष्ट्रीय आय, कुल उपभोग, कुल मांग , रोजगार, राजकोषीय नीतियों, विनिमय तथा मुद्रा स्थिति का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र या सूक्ष्म अर्थशास्त्र :
अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें छोटे समूहों,इकाई उत्पादन, फर्मो, उद्योग, धंधों का अलग-अलग छोटे रूपों में अध्ययन किया जाता है उसे हम सूक्ष्म अर्थशास्त्र कहते हैं सूक्ष्म अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था के व्यक्तिगत पदों ,मात्राओं ,परिवार, फर्मो तथा बाजार के सीमित संसाधनों का अध्ययन करता है यह उस अर्थव्यवस्था से संबंधित है जहां पर वस्तुओं और सेवाओं का छोटी मात्रा में क्रय - विक्रय किया जाता है जिसमें हम लोग, व्यक्तियों, परिवारों, फर्मो, उद्योग एवं अनेक वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों इत्यादि का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है उसे व्यष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं
परिभाषा : व्यष्टि अर्थशास्त्र विशिष्ट प्रमुख विशिष्ट परिवारों व्यक्तिगत कीमतों मजदूरियों आदि विशिष्ट उद्योगों और विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है प्रो बोल्डिंग के द्वारा कहा गया ।
समष्टि अर्थशास्त्र या व्यापक अर्थशास्त्र :
अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक साथ अध्ययन किया जाता है उसे समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं इस अर्थशास्त्र में संपूर्ण आय, संपूर्ण उत्पादन, कुल मांग ,कुल पूर्ति, कुल बचत ,कुल विनियोग ,कुल उपभोग तथा रोजगार का अध्ययन किया जाता है इसको व्यापक या समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं
समष्टि अर्थशास्त्र : कुल राष्ट्रीय आय, कुल मांग, कुल उपयोग ,कुल पूर्ति , कुल बचत, कुल विनियोग
समष्टि अर्थशास्त्र को आय के सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है इसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक साथ अध्ययन किया जाता है इसमें बड़े-बड़े उद्योगों ,धन्धों से होने वाला संपूर्ण उत्पादक देश की कुल आय,कुल उत्पादन एवं कुल विनियोग का विस्तार से अध्ययन किया जाता है
समष्टि अर्थशास्त्र की परिभाषा : समष्टि अर्थशास्त्र कला के प्रति संबंधों की व्याख्या करता है ।
व्यष्टि अर्थशास्त्र :- इसमें व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है इसका क्षेत्र सीमित है इसमें व्यक्तिगत व्यवसायों की तेजी व मंदी का भी अध्ययन हो सकता है यह अंतिम उपभोक्ता तक की क्रियो को शामिल करता है यह सीमांत विश्लेषण के सिद्धांत तक सीमित है इसे माइक्रो या व्यष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं यह औद्योगिक इकाइयों व व्यक्तियों के निर्णय का अध्ययन करता है इसमें भविष्य की आवश्यकताओं का भी अध्ययन किया जाता है
समष्टि या व्यापक अर्थशास्त्र : इसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक साथ अध्ययन किया जाता है इसका क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है इसमें संपूर्ण अर्थव्यवस्था की मंदी व तेजी का अध्ययन होता है यह समस्त क्रियाऔ को संगठित रूप से स्पष्ट करता है यह राष्ट्रीय आय व व्यय व संपूर्ण अर्थव्यवस्था तक विश्लेषण करता है यह सरकारी निर्णय का अध्ययन करता है इसमें वर्तमान समय की संपूर्ण मांग पूर्ति, आय का अध्ययन किया जाता है
अर्थव्यवस्था :-
हम और हमारे आसपास उपलब्ध भूमि ,पूंजी ,श्रम और उद्यमशीलता सभी को मिलाकर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है यह संपूर्ण माहौल ही अर्थव्यवस्था कहलाता है इस प्रकार से अर्थव्यवस्था में संपूर्ण उत्पादन, वितरण एवं उपभोग को करने वाली सभी क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है अतः साधारण अर्थ में अर्थव्यवस्था एक ऐसा ढांचा है जिसके अंतर्गत देश की आर्थिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है इसमें सभी क्षेत्रों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना, देश के लोगों द्वारा उपयोग करना, लोगों को रोजगार प्रदान करना, निर्यात करना आदि शामिल है
अर्थव्यवस्था की प्रक्रियाएं :-
उत्पादन ,उपभोग , विनियोग (विनिवेश)
उत्पादन के साधन :-
भूमि, पूंजी, श्रम, साहस, संगठन
अर्थव्यवस्था के प्रकार:-
(i) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (ii) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(iii)मिश्रित अर्थव्यवस्था
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था:-
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से आशय किसी भी अर्थव्यवस्था के संपूर्ण उत्पादन के साधन पर किसी निजी स्वामी का अधिकार होना होता है अर्थात जिस अर्थव्यवस्था में प्राइवेट संस्थाओं का संपूर्ण अधिकार व नियंत्रण होता है उसे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं इसमें पूंजी पतियों व धन वर्ग का बोल वाला व अधिकार होता है
समाजवादी अर्थव्यवस्था:-
वह अर्थव्यवस्था जिसमें उत्पादन के साधनों पर संपूर्ण नियंत्रण समाज अथवा सरकार का होता है ,उसे समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं इस अर्थव्यवस्था में धन संपत्ति का वितरण व स्वामित्व समाज के नियंत्रण के अधीन होता है यह निजी संपत्तियों पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है
मिश्रित अर्थव्यवस्था:-
वह अर्थव्यवस्था जिसमें समाजवादी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था दोनों के गुण पाए जाते हैं, उसे हम मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी तथा सरकारी दोनों प्रकार की संस्थाएं साथ-साथ मिलकर प्रतिस्पर्धा से अपना व्यवसाय संचालित करती हैं ।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र:-
किसी भी अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रों में बांटा गया है :
प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र , तृतीयक क्षेत्र
(i)प्राथमिक क्षेत्र: कृषि और भूमि से संबंधित।
(ii)द्वितीयक क्षेत्र: निर्माण तथा औद्योगिक क्षेत्र।
(iii)तृतीयक क्षेत्र : वित्तीय एवं सूचना तंत्र।
अर्थशास्त्र की प्रकृति :-
अर्थशास्त्र की प्रकृति को कला व विज्ञान दोनों माना गया है अर्थशास्त्र में कला तथा विज्ञान दोनों के गुण पाए जाते हैं अतः हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र कला व विज्ञान दोनों है, अर्थशास्त्र की प्रकृति को और अधिक स्पष्ट निम्न प्रकार से किया जा सकता है
अर्थशास्त्र कला है: किसी भी कार्य को अच्छे से करने का विशेष तरीका या ढंग कला कहलाता है अर्थशास्त्र के द्वारा उत्पादन कैसे किया जाए अथवा कम व्यय पर अधिक से अधिक उत्पादन कैसे किया जाए इसका विस्तार से अध्ययन किया जाता है , इसलिए हम कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र एक कला है इसके अध्ययन से श्रेष्ठ उत्पादन किया जाता है अर्थशास्त्र से ही यह स्पष्ट होता है कि उत्पादन में किस-किस मात्रा में साधनों का उपयोग करना है , जिससे अधिक से अधिक उत्पादन हो।
अर्थशास्त्र विज्ञान के रूप में : किसी भी क्षेत्र में निश्चित नियमों का प्रयोग व उसका क्रमबद्ध अध्ययन व निश्चित रूप से मिलने वाले परिणामों का अध्ययन विज्ञान के गुणों से संबंधित है इस कारण अर्थशास्त्र को विज्ञान माना जाता है अतः विज्ञान के समान ही परिणाम प्राप्त होने के कारण अर्थशास्त्र विज्ञान है।
अर्थशास्त्र कला व विज्ञान दोनों है : उपरोक्त दोनों ही कला व विज्ञान के गुणों का अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्र कला व विज्ञान दोनों के गुणों को रजता (रखता) है, इसलिए यह कला व विज्ञान दोनों है कम से कम संसाधनों के उपभोग करके अधिक से अधिक उत्पादन करना एक कला है, जो की अर्थशास्त्र की देन है अतः यह कला है परंतु यह विज्ञान भी है क्योंकि अर्थशास्त्र में उत्पादन से उपभोग तक अनेक निश्चित नियमों का प्रयोग किया जाता है अतः यह विज्ञान है इस प्रकार से अंत में यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यह कला व विज्ञान दोनों के गुण रखता है इसीलिए अर्थशास्त्र कला व विज्ञान दोनों हैं