बालकों का अध्ययन जब मनोविज्ञान के आधार पर किया जाता है तो उसे बाल मनोविज्ञान कहा जाता है ।
बाल मनोविज्ञान , मनोविज्ञान की ही एक शाखा है । इसके अंतर्गत बालकों के व्यवहार, स्थिति , समस्याओं तथा उन सभी कारणों का अध्ययन किया जाता है ,जिनका प्रभाव बालकों के व्यवहार पर पड़ता है , वर्तमान समय में अनेक सामाजिक , सांस्कृतिक , राजनैतिक, आर्थिक कारक मनुष्य तथा उसके परिवेश को प्रभावित कर रहे हैं इसके परिणाम स्वरूप बालक, जो भावी समय की आधारशिला होता है, प्रभावित होता है । स्नेह, प्रेम,दया, तथा ममता आदि मनोविज्ञान आवश्यकताओं की पूर्ति होने से उसकी अभिवृद्धि में दोष आ जाता है ।बाल मनोविज्ञान की परिभाषा निम्न है :
क्रो के अनुसार : बाल मनोविज्ञान एक वैज्ञानिक अध्ययन है , जिसमें बालक के जन्म पूर्व काल से लेकर किशोरावस्था तक का अध्ययन होता है ।
थॉम्पसन के अनुसार : बाल मनोविज्ञान सभी को एक नई दिशा में संकेत करता है , यदि उचित रूप से समझा जा सके, तथा उसका उचित समय पर उचित ढंग से विकास हो सके तो प्रत्येक बालक एक सफल व्यक्ति बन सकता है ।
हरलॉक के शब्दों में : बाल मनोविज्ञान , मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से लेकर प्रौढ अवस्था तक होने वाले बालक के विकास के विभिन्न कालों में होने वाले परिवर्तनों पर विशेष ध्यान देते हुए अध्ययन करती है ।
बाल मनोविज्ञान की आवश्यकता एवं महत्व
बाल मनोविज्ञान अनुसंधान का एक क्षेत्र माना जाता है , बाल मनोविज्ञान का बाल जीवन को सुखी बनाने में जो योग है ,वह सर्वथा प्रशंसा योग्य है ,मनोविज्ञान में। बाल जीवन को सुखी बनाने में प्रशंसनिय योगदान है ।बाल मनोविज्ञान की इस शाखा का केवल बालकों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध है और जो बालकों की समस्या पर विचार करते हैं और बाल मनोविज्ञान की उपयोगिता को स्वीकार करते हैं , इसीलिए यदि ये कहा जाए कि लगभग समस्त मानव समाज बाल मनोविज्ञान का ऋणी है तो ये बचन गलत नहीं होगा । समाज के विभिन्न लोग बाल मनोविज्ञान से लाभ प्राप्त कर रहे। हैं जैसे : बालक के माता - पिता , तथा अभिभावक , बालक के शिक्षक आदि।
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